दिल का ख्याल रखना क्यों है ज़रूरी और कैसे रखें दिल को स्वस्थ?

दिल का ख्याल रखना क्यों है ज़रूरी और कैसे रखें दिल को स्वस्थ?
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बदलती जीवनशैली और गलत खान-पान के कारण कम उम्र के लोगों को भी दिल का दौरा पड़ने लगा है। कार्डियो वास्क्यूलर रोग विश्व भर में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। यह विश्वभर में होने वाली कुल मौतों का 30 प्रतिशत है। हृदय को बीमार बनाने में तापमान परिवर्तन, वायु प्रदूषण, शारीरिक सक्रियता, खानपान और तनाव प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

आज हृदय रोगों का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। हृदय रोगों में सबसे घातक है कोरोनरी हृदय रोग। अभी तक कोरोनरी हृदय रोग के उपचार हेतु जिस तरह का औषधीय प्रबंधन विकसित किया गया था, उससे अस्थायी राहत ही मिलती है। तो कैसे करें इसका निदान – आइए पढ़ें इस ब्लॉग में।

दिल की बीमारी के कारण

तेजी से बढ़ रहे दिल के रोगों के कारण जानने के लिए बहुत गहरी रिसर्च की गई है, जिसमें निम्न कारण ये हैं:

  • ट्राईग्लिस राइडस का उच्चस्तर,
  • मोटापा, घी/तेल का अत्यधिक सेवन
  • दूध व दूध से निर्मित पदार्थों का अत्याध्कि सेवन,
  • मधुमेह, इंन्सुलिन दवा का अप्रभावी होना
  • तनाव एवं शहरीकरण, जानकारी एवं जागृति का अभाव
  • अच्छी क्वालिटी के कोलेस्ट्रॉल की कमी
  • संकरी धमनियां एवं उच्चरक्तचाप
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हार्ट अटैक के लक्षण

एन्जाईना आमतौर पर तब होता है जब हृदय को सामान्य से अधिक काम करना पड़ता है, जैसे शारीरिक अभ्यास या भावा वेश में। इससे सीने, बांह, गले, पीठ या जबड़े में दबाव, तनाव या दर्द होने लगता है। पतली हो गई धमनी के कारण हृदय की मांसपेशी के हिस्से को पर्याप्त मात्रा में खून और उसके द्वारा ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। आराम या कई विशेष दवाओं की मदद से हृदय द्वारा खून की मांग फिर से सामान्य हो जाती है और दर्द चला जाता है। इस प्रकार हृदय को स्थायी हानि नहीं होती। दिल का दौरा पड़ने से जहाँ पर धमनी पतली होती है, वहाँ पर एक थक्का (क्लॉट) बन जाता है। इस कारण हृदय की मांसपेशी के प्रभावित भाग को ऑक्सीजन नहीं मिलती और वह भाग बेजान हो जाता है। हृदय की खून पम्प करने की शक्ति कम हो जाती है और सीने में दर्द होता है। और-तो-और, यह आराम के साथ खत्म नहीं होता। दिल के दौरे के संकेतों में सांस की कमी, पसीना आना, कमजोरी या चक्कर आना भी हो सकते हैं।

एंजियोप्लॉस्टी और बायपास सर्जरी

हृदय की मांसपेशियों को बचाने के लिये सबसे आवश्यक यह है कि भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति फिर से प्रारंभ की जाए। इसके लिए एंजियोप्लॉस्टी एक कारगर उपचार माना जाता है, जिसने हार्ट अटैक से मरने वाले लोगों की संख्या को उल्लेखनीय तरीके से घटा दिया है। इसके अलावा रक्त के प्रवाह को सुधारने के लिये बायपास सर्जरी भी की जाती है, जिसमें सर्जरी के द्वारा रक्त नलिकाओं को सर्जरी के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थापित किया जाता है।

एऑरटिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (AVR)

अगर हृदय का कोई वॉल्व ठीक प्रकार से काम नहीं कर रहा है, तो इसे बदलने के लिये सर्जरी आवश्यक है। इस वॉल्व को निकालकर उसके स्थान पर कृत्रिम वॉल्व लगा दिया जाता है ताकि हृदय ठीक से काम कर पाए।

हृदय प्रत्यॉरोपण (हार्ट ट्रांसप्लांट)

इसमें बीमार या क्षतिग्रस्त हृदय को निकालकर उसके स्थान पर स्वस्थ हृदय को लगा दिया जाता है। इस प्रक्रिया का उपयोग हार्ट फेलियर से पीड़ित लोगों के लिए अंतिम उपचार के रूप में किया जाता है। इसमें उन लोगों का हृदय लिया जाता है, जिन्हें ब्रेन डेथ घोषित कर दिया गया हो। इसे डोनर के शरीर से निकालने के बाद छह घंटे पहले प्रत्यारोपित करना आवश्यक है।

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हार्ट अटैक का निदान

यदि समय रहते दिल की स्थिति का सही-सही पता चल जाए तो बाईपास व एजियोंप्लास्टी से बचा जा सकता है।

रोकथाम

  1. नियमित अंतराल पर खाएं – हृदय को अतिरिक्त दबाव से बचाने के लिए कम मात्रा में खाएं लेकिन नियमित अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाते रहें। शरीर में पानी की कमी न होने दें, फलों का सेवन करें, एक बार में अधिक मात्रा में न खाएं,  इससे हृदय पर दबाव पड़ता है, नियमित अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाएं।
  2. खानपान राइट- हृदय रोगियों के खानपान में तेल बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। इसका मतलब है कि किसी भी ब्रांड का चाहे वह पाम आयल, रिफाइंड आयल, सनफ्लावर आयल, कार्न आयल, सरसों तेल, बादाम आयल, आलिव आयल, नारियल तेल, घी, फिश आयल, राइस आयल, कुछ भी हो उसे खाना बनाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  3. तनाव पर काबू- इस भाग दौड़ वाली जिंदगी में तनाव से नहीं बचा जा सकता, लेकिन इसे अभ्यास, समझ और आकलन के द्वारा 60 फीसदी तक कम किया जा सकता है। हृदय रोगियों को उन बाहरी तत्वों को खासतौर पर पहचानने की जरूरत है जिससे तनाव पैदा होता है और उससे सावधान रहना चाहिए।
  4. व्यायाम- हम रोगी को रोज टहलने की सलाह देते हैं। प्राय: हृदय रोगियों को कम से कम 30-35 मिनट तक टहलना चाहिए। अगर कोई रोगी बिल्कुल ही बिगड़ी हुई स्थिति में है तो उसे दो मिनट ही टहलना चाहिए और धीरे-धीरे दो-तीन हफ्तों में बढ़ते हुए उचित स्तर तक गति बिल्कुल सुविधानुसार हो जानी चाहिए; जो घर के बाहर टहलने नहीं जा सकते वे घर के अंदर ही बिना रुके टहल सकते हैं।

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डॉ. आलोक सहगल क्लिनिकल कार्डियोलॉजी और कार्डियक इंटरवेंशन में विशेषज्ञ हैं। 20 वर्षों से अधिक अनुभव वाले दिल्ली के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक सहगल मुख्य सलाहकार, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी तौर पर यशोदा हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, नेहरू नगर, ग़ाज़ियाबाद में अपनी सेवा दे रहे हैं।

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यशोदा हॉस्पिटल

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