रीढ़ की हड्डी के दर्द को न लें हल्के में

रीढ़ की हड्डी के दर्द को न लें हल्के में
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आजकल रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना बहुत ही आम बात हो गई है। युवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हर कोई इससे पीड़ित है। शुरू-शुरू में लोग इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, लेकिन बाद में यही दर्द जब उनके लिए असहनीय हो जाता है और किसी बड़ी बीमारी का सबब बन जाता है तब वे डाक्टर के पास जाते हैं। इस दर्द को सामान्य नहीं लेना चाहिए। दरअसल यह एक ऐसा दर्द है, जिसके बारे में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं हैं। लेकिन इसकी शुरूआत चोट लगने से, भारी वस्तु को उठाने से, या फिर अचानक गलतढंग से शरीर को मोड़ने से होती है।

 रीढ़ की हड्डी में चोट:

किसी भी दुर्घटना के बाद चोट की गंभीरता इस पर निर्भर करती है कि रीढ़ की हड्डी का कौन-सा भाग चोट ग्रस्त हुआ है। उदाहरण के तौर पर यदि सर्वाइकल स्पाइन यानी गर्दन के आसपास में चोट लगी है तो पैरों और हाथों की मूवमेंट में दिक्कत आ सकती है। इस अवस्था को टेट्राप्लेगिया के नाम से भी जाना जाता है। इस  तरह की चोट में मरीज को अक्सर वेंटिलेटर पर रहना पड़ता है क्योंकि मरीज की कईन सें चोट ग्रस्त हो जाती हैं और उसमें खुद से उठने बैठने की ताकत नहीं होती। स्पाइनल कॉर्ड के निचले भाग में चोट लगने से मरीज को लकवा आदि हो सकता है। कई केसों में शरीर का निचला भाग बेकार हो जाता है। इस अवस्था को पैराप्लेगिया के नाम से जाना जाता है।

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मरीज के केस की जटिलता इस पर भी निर्भर करती है कि मरीज को कंप्लीट इंजरी है या इनकंप्लीट। कंप्लीट इंजरी के केस में मरीज को चोटिल भाग में और आस-पास के हिस्से में किसी हरकत का एहसास नहीं होता। सब कुछ जैसे सुन्न हो जाता है; लेकिन इनकंप्लीट इंजरी में मरीज को चोटिल भाग में दर्द, हरकत या किसी प्रकार का एहसास अवश्य होता है। जितनी बड़ी इंजरी होती है, केस उतना ही गंभीर होता है और इंजरी जितनी कम या छोटी होती है केस में जटिलता भी कम होती है।

रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण:

उन केसों में जहां गर्दन या रीढ़ की हड्डी बुरी तरीके से मुड़ जाती है वहाँ रीढ़ की हड्डी में चोट लग सकती है जैसे:

  • पैदा होते समय
  • कहीं से गिरने पर
  • सड़क दुघर्टना
  • खेलते समय चोट लगने से
  • डाइविंग करने से
  • घुड़सवारी करते समय गिर जाने से
  • गोली लगने से

रीढ़ की हड्डी में चोट के लक्षण:

  • मांसपेशियों में कमजोरी
  • पैरों हाथों व छाती या उनकी मांसपेशियों में हरकत न होना
  • सांस लेने में तकलीफ
  • ब्लैडर मूवमेंट में असमर्थता

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रीढ़ की हड्डी में चोट के लिए निदान:

  • रक्त जांच
  • एक्स-रे
  • सीटी स्कैन या कैटस्कैन
  • एमआरआई

रीढ़ की हड्डी में चोट के लिए उपचार:

स्पाइनल कोर्ड इंजरी का उपचार जटिलता को देखकर किया जाता इसके अलावा कुछ अन्य कारकों पर भी ध्यान देना चाहिए जैसे कि किस प्रकार की इंजरी है। मरीज का शरीर कौनसा उपचार झेल सकता है? चोट लगने के बाद तुरंत ही कुछ उपचार करने होते हैं जैसे गर्दन आदि में प्लास्टर। कभी-कभी सर्जरी करने की भी जरूरत पड़ जाती है ताकि मरीज की इंजरी से उसके शरीर को अधिक नुकसान न पहुंचे। एक्यूट स्पाइनल कोर्ड इंजरी के अधिकतर केसों में चोट लगने के बाद मरीज को आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा जाता है। पेय पदार्थ देने के लिए मरीज के गले में नली लगाई जाती है। मल-मूत्र के लिए भी एक ट्यूब लगाई जाती है। डाक्टरों की टीम बराबर मरीज के दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर आदि पर निगरानी रखते हैं और मरीज को दवाइयां दी जाती हैं।

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रीढ़ की हड्डी में चोट के लिए एंडोस्कोपिक उपचार:

कई केसों में एंडोस्कोपी से भी मरीज की कुछ समस्याओं को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में एक छोटा-सा छेद करके लेजर के माध्यम से यह उपचार किया जाता है। इसमें रक्त स्राव व चीर-फाड़ कम होती है। इसीलिए हर बड़ी सर्जरी के स्थान पर संभव हो सके तो एंडोस्कोपी को वरीयता दी जाती है।

ऐसे केसों में मरीजों को लंबे समय तक हास्पिटल में रुकना पड़ सकता है। मरीज को रीहैबिलिटेशन की आवश्यकता भी हो सकती है। इलाज हो जाने के बाद रीहैबिलिटेशन एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे मरीज को फिर से सामान्य जीवन में वापस लौटने में सहायता मिलती है और वह जल्दी से जल्दी अपने काम शुरू कर सकता है। स्वास्थ्य लाभ की इस प्रक्रिया के अंतर्गत फिजिकल थेरैपिस्ट मरीज को उसकी ताकत और संतुलन फिर से हासिल करने में सहायता पहुंचाता है।

स्पीच थेरेपिस्ट परेशानी से निजात पाने में मरीज की सहायता करता है। बीमारी के कारण मरीज की सामान्य दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट मरीज को खाने, पीने, नहाने, शौचालय जाने, कपड़े पहनने जैसे दैनिक क्रियाओं को अंजाम देने में सहायता पहुंचाता है, उसे यह सब करने को तैयार करता है। ये मरीज और उसके परिवार के लिए बेहद दुखदायी समय होता है। ऐसे में मरीज को अपनों के प्यार व प्रोत्साहन की बहुत जरूरत होती है जो कि मरीज को मानसिक तौर पर इतना मजबूत बनाए कि उसके अंदर जीने व ठीक होने की इच्छादृढ़ता को बढ़ाये और वह उपचार में पूरी तरह से सहयोग कर सके।

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 रीढ़ की हड्डी के स्पेशलिस्ट्स:

डॉ. अजय पंवार यशोदा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ सलाहकार और सर्जन हैं। वह घुटने के प्रतिस्थापन, जोड़ों के प्रतिस्थापन, आर्थोपेडिक आघात, कूल्हे और घुटने की आर्थ्रोप्लास्टी सर्जरी और खेल चोटों में विशेषज्ञ हैं। 30 वर्षों से अधिक अनुभवी डॉ. पंवार उत्कृष्ट परिणामों के साथ नियमित कूल्हे और घुटने के प्रतिस्थापन और कठिन पुनरीक्षण सर्जरी में विशेषज्ञ हैं।

डॉ.विपिन त्यागी वरिष्ठ सलाहकार और आर्थोपेडिक ट्रॉमा और संयुक्त प्रतिस्थापन विभाग के प्रमुख के रूप में यशोदा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कार्यरत हैं। जहां उन्होंने अब तक जटिल और जटिल फ्रैक्चर, रीढ़ की सर्जरी और कूल्हे और घुटने के प्रतिस्थापन सहित 20,000 से अधिक सर्जरी सफलतापूर्वक की हैं।

डॉ. राहुल काकरान यशोदा अस्पताल, गाजियाबाद में सर्वश्रेष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञों में से एक हैं। डॉ. काकरान फ्रैक्चर और विस्थापित जोड़ों के इलाज में 11 साल से अधिक का अनुभव रखते हैं, जिसमें से 6 साल से अधिक का अनुभव रीढ़ की हड्डी और जोड़ों की विकृति के इलाज में है। डॉ. काकरन ने ऊपरी और निचले अंगों के जटिल फ्रैक्चर का इलाज करने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से D8 स्तर तक MISS तकनीक द्वारा विभिन्न पोस्टीरियर लॉन्ग सेगमेंट फिक्सेशन भी किए हैं।

यशोदा हॉस्पिटल

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यशोदा अस्पताल गाजियाबाद, नोएडा और दिल्ली एनसीआर में सर्वश्रेष्ठ सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में से एक है। यशोदा हॉस्पिटल का लक्ष्य सिर्फ दिल्ली एनसीआर, गाजियाबाद और नोएडा में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल होने के नाते, यशोदा अस्पताल में एक ही छत के नीचे सभी समर्पित विशिष्टताएँ हैं- गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, सामान्य सर्जरी, प्रसूति एवं स्त्री रोग, कार्डियोलॉजी, पल्मोनोलॉजी और आंतरिक चिकित्सा, आर्थोपेडिक्स, मूत्रविज्ञान और कई अन्य।

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